If God comes roll-calling on the internet, and the way it is going, She/He certainly may, I must not be absent. And therefore, this blog is my proxy herein.

Do let me know, if you want me to stop doing this to the human-kind (/unkind). Or, rarer still, if you want me to do more of the same.

(And ah, while you are here, do feed the fish. They like mouse pointers.)

Thursday, June 4, 2009

बेकार गया गीत

हिन्दी में लिखना जारी है
क्योंकि मेरे लिए ये हुई नही अभी भारी है
एक कविता का सोंचता हूँ पाठ करुँ
पर पशेमां हूँ, कैसे स्टार्ट करुँ?
क्या आडवाणी की वाणी का आह्नाद करुँ
या मोदी को मंडित, मस्जिद बरबाद करुँ
अयोध्या गोधरा सच हैं, 'अटल' हैं
पर कविता में कहाँ इनका हल है?
राहुल की राह में आह्लादित हुं
या वंशवाद का प्रतिवाद करुँ
कहते हैं इनका रस्ता देखता पूरा मुल्क है
पर क्या मेरी कलम पे भी नेहरू का शुल्क है?
हसिये के हाशिये पे गीत लिखुँ
एक कदम आगे, दो पीछे की रीत लिखुँ
हाथी के साथी आज असमर्थ हैं
इनपर भी कटाक्ष वाली कविता कहना व्यर्थ है |
असमंजस की स्थिति जस् है
करुणा की नदी न टस है, न मस् है
मेरे इसी झोल-झंकार में देखो बीट गया
और बेकार मेरा एक और गीत गया |

प्रजातंत्र आज फ़कीर है, समस्या गंभीर है

मस्तक विकट
छोटा मुकट
समस्या गंभीर है
समस्या गंभीर है

टाट छोटा
बाट मोटा
युद्घ की ये लकीर है
समस्या गंभीर है

पाँव न घटे
तो चलो देश ही बटे
बाप की जागीर है
समस्या गंभीर है

आपके विकार
भी जनता को स्वीकार
जैसे गंगा का नीर है
समस्या गंभीर है


जिसका था वोट
होगा उसमें ही खोट
आप तो साधू धीर हैं
समस्या गंभीर है

चुनाव तक प्रजातंत्र है
आगे आपका ही मंत्र है
आप मंडल कमंडल हसिया तीर हैं
समस्या गंभीर है, समस्या गंभीर है |