कहीं दो बच्चे सोया करते थे
हर रात की आंधी में
वो भूखे रोया करते थे
हर धुंध में दोनों खो जाते
हर किरण मिलाया करती थी
हर सुबह कहीं वो छुप जाते
हर नींद बुलाया करती थी
पर बाँध-बाँध वो उड़ जाते
उस ऊंचे उजले बादल पर
कहीं कभी कालिख-सी लगती
था उनकी आंखो का काजल पर
उन पत्तों की फाँको से
वो हमें बुलाया करते हैं
जंगल की झाड़ी में छुप-छुप
हम रूठे-मनाया करते हैं
ये कविता अच्छी लगी
ReplyDeleteशुक्रिया अभिषेक!
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